लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।

अथवा
भ्रमरगीत की रचना का क्या उद्देश्य था? उसमें सूरदास कहाँ तक सफल हुए हैं? सतर्क उत्तर दीजिए।

उत्तर -

हिन्दी काव्य में 'भ्रमरगीत' शब्द का प्रयोग एक विशेष अर्थ में किया जाता है। इसका सम्बन्ध कृष्ण उनके भान - गूढ़ सखा उद्धव तथा ब्रज के गोप-गोपियों विशेषकर गोपियों से हैं।

श्रीकृष्ण अपने सखा उद्धव को विरह व्याकुल ब्रज गोपियों को सांत्वना देने के लिए भेजते हैं। उद्धव ब्रज पहुँचते हैं। वह गोपियों के सम्मुख अद्वैतवाद ब्रह्म की व्यापकता, योग-साधना आदि का उपदेश देते हैं। गोपियों को उनका उपदेश नहीं सुहाता है। परन्तु उद्धव को अपना पूज्यनीय अतिथि जानकर चुप रह जाती हैं। इतने में ही एक भ्रमर कहीं से उड़ता हुआ वहाँ आ जाता है। गोपियाँ समझ लेती हैं कि श्रीकृष्ण ही उस भ्रमर का रूप धारण करके पधारे हैं। बस वे भ्रमर को लक्ष्य करके उद्धव के प्रति अपनी समस्त विरह व्यथा निवेदन कर डालती है। उनके प्रेम प्रवाह में उद्धव की ज्ञान गरिमा बह जाती है और उद्धव उनकी भक्ति द्वारा अभिभूत हो उठते हैं। वे उपदेश देने गये थे, स्वयं भक्ति और प्रेम द्वारा परीभूत होकर लौटते हैं। इस प्रकार ज्ञान और योग के ऊपर सगुण भक्ति की विजय होती हुई दिखाई देती है। संक्षेप में 'भ्रमरगीत का यही वर्ण्य विषय है।

भ्रमरगीत की विशेषताएँ सारांश रूप में सूर के 'भ्रमरगीत' की विशेषताएँ निम्नलिखित मानी जाती हैं -

1- गोपियों को सांत्वना देने के लिए उद्धव का ब्रज जाना।
2- भ्रमर का आगमन और उसको लक्ष्य करके गोपियों द्वारा विरह व्यथा व्यक्त करना, कृष्ण के प्रति उपालभ्य देना तथा कुब्जा के प्रति व्यंग्योक्तियाँ।
3- उद्धव गोपी संवाद, जिसमें निर्गुण का खंडन और सगुण का मण्डन।
4- अन्त में उद्धव का निरुत्तर हो जाना अर्थात् ज्ञान और योग के ऊपर प्रेम और भक्ति की विजय।

भ्रमरगीत की रचना का उद्देश्य सूरदास का भ्रमरगीत' यद्यपि भागवत् के आधार पर लिखा गया है, किन्तु फिर भी उसकी अपनी विशेषताएँ हैं। भ्रमरगीत प्रसंग को लेकर सूरदास ने एक विशेष परम्परा का सूत्रपात किया है। सूर का भ्रमर गीत एक निश्चित उद्देश्य से बना हुआ है। इसके पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने निर्गुण के ऊपर सगुण की, ज्ञान के ऊपर भक्ति की ओर मस्तिष्क के ऊपर ह्रदय की विजय चित्रित की है। सूरदास का लक्ष्य यह रहा है कि वह एक सरस रचना हिन्दी जगत् को भेंट करें।

ज्ञान की कोरी बचनावली और योगी की थोथी साधनावली का यदि साधारण लोगों में विशेष प्रचार हो तो अव्यवस्था फैलने लगती है। निर्गुण पंथ ईश्वर की सर्वव्यापकता, भेदभाव की शून्यता सब मतों की एकता आदि लेकर बढ़ा जिस पर चलकर अनपढ़ जनता ज्ञान की अनगढ़ बातों और योग के टेढ़े मेढ़े अभ्यासों को सही सब कुछ मान बैठी तथा दंभ, अहंकार आदि दुवृत्तियों से उलझने लगी। ज्ञान का कहकहरा भी न जानने वाले उसके पारंगत पंडितों से मुंहजोरी करने लगे। अज्ञान से जिनकी आंख बन्द थी। वे ज्ञानचक्षुओं को आंख दिखाने लगे-

वादहि मुद्र द्विजन्ह सन दम तुम्ह ते कछु घाटि।
जानि ब्रह्मा सो विप्रवर आँखि देखावहिं डाँटि। (मानस)

जैसे तुलसी के 'मानस' में यह लोक विरोधी धाग खटकी वैसे ही सूर की आंखों में भी तुलसी ने स्पष्ट शब्दों में कड़ाई से इसका परिहार करने की ठानी। प्रबन्ध का क्षेत्र चुनने से उन्हें इसके लिए विस्तृत भूमि मिल गई। पर गीतों से सूर ने इसका प्रतिवाद प्रत्यक्ष नहीं, प्रच्छत्र रूप में किया। उन्होंने उद्धव प्रसंग में 'भ्रमरगीत' के भीतर इसके लिए स्थान निकाला। उद्धव के योग एवं ज्ञान का जो प्रतिकार गोपियों ने 'सूरसागर' में किया, वह सूर की योजना है। श्रीमद्भागवत् में, जिसकी स्थूल कथा के आधार पर 'सूरसागर रचा गया वह विधान है ही नहीं उद्धव के ब्रज जाने, उपदेश देने, भ्रमर के आने और उसे खरी-खोटी सुनाने का वृत्त तो वहाँ है पर गोपियों द्वारा ज्ञान या योग का विरोध नहीं। ब्रज में उद्धव का केवल स्वागत-सत्कार ही हुआ है। फटकार की मार उन पर नहीं पड़ी। अतः यह तत्कालीन उद्वेग जनक प्रवृत्ति ही थी जिसका उच्छेद करने के लिए सूर ने 'सागर' की ये उताल तरंगें लहराई। ज्ञान या योग की साधना भूली न हो, सो नहीं। वस्तुतः यह कठिन है, सामान्य विद्या बुद्धि वालों की पहुंच से परे है। पक्ष में उद्धव ऐसे ज्ञान वरिष्ट पुरुष और विपक्ष में ब्रजवासिनी ऐसी ज्ञान कनिष्ठ स्त्रियों को खड़ा करके सूर ने ज्ञान एवं योग का प्रतिरोध साधारण जनता की दृष्टि से किया। ज्ञान योग के प्रति पक्ष में प्रेम दृष्टि से किया। ज्ञान की ऊंची तत्वचिन्ता उनके लिए नहीं। ज्ञान योग के प्रतिपक्ष में प्रेम योग का मंडन करके यह पत्तिपन्न किया गया है कि भक्ति की भी वही चरमावधि है जो ज्ञान की -

अहो अंजान ! ज्ञान उपदेसत ज्ञानरूप हमहीं।
निसदिन ध्यान सूर प्रभु को अति ! देखत जित तितहिं।

सूर ने ज्ञान या योगमार्ग को संकीर्ण, कठिन और नीरस तथा भक्तिमार्ग को विशाल, सरक और सरस कहा है। ज्ञान योग का अभ्यासी विश्व की विभूति से अपनी वृत्ति समेटकर अंतर्मुख हो जाता है। इसलिए गुह्या रहस्य एवं उलझन की वृद्धि होती है पर भक्ति का अनुरागी बहिर्मुख रहता है। वह जगत के विभूतिभूत श्रीमत और उर्जस्वित रूपों में अपनी वृत्ति रमाए रहता है। इसलिए दुराव- छिपाव से रहता है। उसके लिए सब कुछ सुलझा हुआ है। इस प्रकार भक्ति का राजमार्ग चौड़ा, निकंटक और सीधा है। उसमें गोपन रहस्य का उलझाव कही नहीं -

काहे को रोकत मारग सूधो।
सुनहु मधुप ! निर्गुन कंटक तो राजपंथ क्यों रूधो॥
        X                       X                              X
राजपंथ ते टारि बताबल, उरझ, कुबील कुपैडौ।
सूरदास समाय कहाँ लौं अज के बदन कुम्हैड़ो !!

विश्व की विभूति में मन को रमाने का जैसा अवसर भक्ति भावना में है वैसा अंत साधना में नहीं। कल्याण का मार्ग अन्तर्व्यापी नहीं बहिव्यापि सत्ता से फूटता है -

दूर नहीं दयाल सब घट कहत एक समान।
निकसित क्यों न गोपाल बोधत दुखिन के दुःख जान।
        X                     X                              
X

उर तो निकसि करत क्यों न सीतल जो पै कान्ह यहाँ है। सगुणोपासना साधार होती है, मन को रमाती है। निर्गुणोपासना निराधार होती है मन को चक्कर में डालती है -

रूप रेख गुन जाति जुगुति बिनु निरालंब मन चकृत धावै।
सब विधि अगम विचारहिं तातें सुर सगुन लीला पद गावै॥

इसी के योग या साधना या निर्गुणोपासना नीरस कही गई है -

ए अलि ! कहा जोग में नीको।
तजि रस-रीति नंदनंदन की सिखयत निर्गुण कीको।

    X                         X                             X
सूर कहाँ गुरु कौन करै अलि ! कौन सुनै मत फीको।

सगुण निर्गुण के विवाद से उद्धव-प्रसंग इतना खिला कि और भी कई समर्थ कवि उस पर रीझे। नंददास ने भी भाव भरा 'भंवरगीत' गाया। उसकी टेक मिश्रित गीत शैली भ्रमरगीत की विशिष्ट पद्धति ही मान ली गई है। इनका भँवरगीत शुद्ध मुक्तक न होकर पद्य निबन्ध के ढंग पर चला है। इसलिए उसमें गोपी उद्धव संवाद सधा हुआ आया है।

अतः भ्रमरगीत के सार का विवेचन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ऊपरी तौर पर यह कृष्ण के प्रति सूर की एकात्विक भक्ति साधना की अभिव्यक्ति लगे और चाहे गोपियों की कृष्ण के प्रति एक निष्ठा और रागानुराग वृत्ति का प्रकटन हो किन्तु वास्तव में यह तत्कालीन समय में चल रहे विचार वैविध्य सगुण या निर्गुण की श्रेष्ठता विश्लेषण ही है। सूर न सिर्फ सगुणोपासक हैं वरन् अपने आराध्य श्रीकृष्ण के साथ सख्य भाव के प्रबल पोषक भी हैं इसलिए सम्पूर्ण भ्रमरगीत सार निर्गुण का खंडन और सगुण का मंडन का साधन बन गया है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सूर का वाग्वैदिग्ध चतुरता प्रत्युत्पन्न मति उनके काव्य में इस लक्ष्य की प्राप्ति में सोने में सुहागा जैसा काम कर गयी है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book